मेरा परिचय ।मै सुरेन्द् सागर । मदहाेश 1999 का सफर । https://youtube.com/channel/UCvJW3LaYUYxUQVXNmZ5dVUA

surendra sagar
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हिन्दी शायरी मदहोश 1999 /
दोस्तों इस वीडियो में मैं अपना परिचय एवं कलाकृति को दिखाने जा रहा हूं !https://youtu.be/muxWJVwSaTs
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तो दोस्तों मैं आप सबको बता दूं की मैं एक किसान का बेटा हूं !और खुदभी एक किसान हूं  ! खेती हमारा पेसा है !खेती का अलावा मेरा एक धान गेहूं एवं भीगा हुआ चावल पीसने वाला मिल भी है ! जिससे मैं स्वयं चलाता हूं !मैं वेल्डिंग भी करता हूं !और सिलाई भी करता हूं !
तो दोस्तों इस वीडियो में मैं आपको बैकग्राउंड में दिखाने जा रहा हूं कि मैंने किस तरह से दो ऐसे मोबाइल स्टैंड बनाया है !तो दोस्तों इस वीडियो का साथ ही मैं अपना परिचय एवं अन्य कामकाज और कलाकृति का वर्णन करने जा रहा हूं ताकि वीडियो लंबी न हो ! 
 गांव के लोग फोटो एवं फोटो कॉपी के लिए गांव से 7-8-किलोमीटर दूर बाजार को जाया करते थे तो मैंने अपना शौक एवं लोगों का इस तकलीफ को दूर करने के लिए एक कंप्यूटर और प्रिंटर भी घर में रख लिया जिससे मेरा शौक भी मिट जाता है और कुछ इनकम भी हो जाता है! और लोगों को सुविधा भी मिल जाता है इस स्टूडियो का वास्ते मुझे एक मोबाइल स्टैंड का जरूरत था तो मैंने इस तरह का पुराना कबाड़ी वाले साइकिल का फ्रेम से एक मोबाइल स्टैंड बनाया 
https://youtu.be/muxWJVwSaTs
इससे पहले मैंने मोबाइल में वीडियो देखने एवं लेटकर मोबाइल चलाने के लिए गृल पति द्वारा एक छोटा मोबाइल स्टैंड बनाया जो बिस्तर पर लेट कर मोबाइल चलाने में बहुत आसान होता है !हाथ से पकड़कर मोबाइल चलाने में रात में मोबाइल चलाते चलाते कभी आंख लग गई तो मोबाइल हाथ से छूट कर जमीन पर गिर जाता था !मगर इस स्टैंड पर लगाकर चलाने से मोबाइल गिरने का डर नहीं रहता !और एक हाथ से काम भी हो जाता है ! अगर वीडियो देखना हो तो भी पकड़कर रखने का जरूरत नहीं पड़ती !
दोस्तों अब मैं फिर अपनी कहानी की ओर ले चलता हूं आपको !जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे तब से मैंने हिंदी में शायरी गीत और कहानी लिखना शुरू किया दसवीं पास के बाद मैने आगे का पढ़ाई कर नहीं पाया !:फिर कुछ देखने सुनने और शायरियों की प्रकाशन के लिए 1995 में चले गए जालंधर वहां मैने  जीजी इंटरप्राइजेज कंपनी में 12 से 15 महीने तक अलमुनियम का काम किया फिर वहां मैंने पंजाब केसरी भी पड़ने लगा ! तो मैंने पंजाब केसरी में एक इश्तिहार देखा फिल्म कंपनी की जिस कालिए कलाकार एवं राइटर चाहिए था !
उस कंपनी का इश्तेहार में कलाकार और राइटर का डिमांड था मैंने अपनी जानकारी चिट्ठी मार्फत पठाया तो उस बालाजी फिल्म कंपनी से मुझे एक एक करके तीन पत्र मिले मुंबई की !मगर कारण बस में जा ना सका फिर वही पर मैंने कई दिन मार्केटिंग कंपनी में भी काम किया जो मेरे लिए ठीक नहीं था !फिर मैंने 1996 में दिल्ली आ पहुंचा और वहां मैंने 3 महीने रह कर अलमुनियम का काम किया !
वहां से आने के बाद मैं अपने शहर बिराटनगर पर टाइपिंग की ट्रेनिंग लिया क्योंकि जालंधर में मैं जिस कंपनी पर रहता था उसका घर  में टाइपिंग मशीन देखा था तभी मन में ठान लिया था कि मुझे टाइपिंग सीखना है तो इसी इच्छा को पूरा करने के लिए मैंने अपने शहर विराटनगर में टाइपिंग का कोर्स पूरा करके प्रमाण पत्र हासिल किया! 
मैं आप सभी को बता दूं कि मैं सातवीं कक्षा गांव के श्री जनता मां भी आम गाछी में पढा जो अब मा बी हो चुका है फिर आठवीं नौवीं दसवीं एवं एसएलसी रंगेली पब्लिक माध्यमिक विद्यालय में किया ! हमारे घर से यह स्कूल 8 किलोमीटर दूर था ! और मैं 3 साल पैदल चल कर अपना पढ़ाई पूरा किया !यही रंगेली में ही मैंने  1997 मे सी एच डब्ल्यू  कम्युनिटी हेल्थ वर्कर का 6 महीने ट्रेनिंग लिया! जिससे मैं साधारण मेडिसिन का जानकारी हासिल किया और  समाज में आरपीएम के तहत साधारण बीमारियों का इलाज करने लगा ! मगर यह भी मुझे पसंद नहीं आया !और प्रैक्टिस छोड़ दिया! शायरियां का किताब छापने के लिए मैने जालंधर दिल्ली एवं पटना जैसे शहर घूम कर आ गया मगर मैं इसे सही जगह नहीं पहुंचा पाया !
1998 में अररिया का नौनी प्रेश में इसे शायरी किताब  छाप्कुने का अगर दिया! 22 सौ रूपये एडवांस  भी दिया मगर असफल रहा वह पैसे डूब गया !
उसको अररिया कोर्ट में खड़ा कर अपना डाक्यूमेंट्स वापस लिया फिर 1999 में पूर्णिया में केडिया प्रेश मे 1000/- की संख्या मे ये बुक छपवाया!
और अपने इलाके का दुकानदारों को बेचने दिया ! किताब तो बिका मगर पैसे नहीं मिला !फिर मैंने इस बुक को ऐसे ही लोगों में बांटने लगा और घर में बैठकर 20 साल तक पढ़ा रहा घर में एक बैग में कस करके उसे 20 साल तक रखा और फिर एक दिन अचानक मैंने देखा कि  सारे किताबों को धीमक ने खा चुका है ! 
बिल्कुल इस तरह से इस वीडियो को हम देख सकते हैं !
इस तरह बहायाथा मैंने अपनी किताबौको!
 दोस्तों मैंने कई गीत शायरी और कहानियां भी लिखा था 
जो अप्रकाशित थी!  2 दर्जन से अधिक हिंदी गीत और एक दर्जन हिंदी कहानियां और कइ अप्रकाशित शायरीयो को मै ईस सुनके मे रखा था ! इसे भी धिमक ने खाकर मिट्टी बना दिया !
असफलता के बाद शायरी क्या इस तरह का डॉक्यूमेंट को भी मैंने देखना बंद कर दिया !
मैंने 2014 में एक साधारण मोबाइल से फेसबुक आईडी खोलो फिर 2016 को मैंने एक फेसबुक पेज मदहोश 1999 भी लिखा ! उस पर मैंने ज्यादा नहीं लिख पाया क्योंकि लिखने का वक्त नहीं मिला और ना ही आईडिया मिला !
और हमें यह भी पता नहीं था कि फेसबुक पेज से भी लोग पैसे कमाते हैं ! फिर हाल ही में मुझे पता चला की यूट्यूब से लोग पैसे कमाते हैं! ब्लॉगर से लोग पैसे कमाते हैं !और मेरा एक भतीजा जय कृष्ण ने मुझे एक ब्लॉक बनाकर उस ब्लॉक में इन शायरी किताबों को लिखने के लिए प्रेरित किया! फिर उसी का प्रेरणा स्वरूप और उसी ने इस ब्लॉक को बनाने में भी मदद किया और मैं आज एक ब्लॉक लिख रहा हूं और उसी ब्लॉक पर इस अपना परिचय को भी बताने जा रहा हूं! 
दोस्तों इस ब्लॉग में मैंने अपना इस मदहोश 1999 क्योंकि मैंने इसे 1999 में प्रकाशित किया था !ईसलीए इस किताब का नाम मदहोश 1999 रखा !इसी किताब को मैंने इस ब्लॉग में उतारा है और कई अप्रकाशित रचनाएं भी है !
दोस्तों मैं आपको यह भी बता दु कि मेरा साहित्यका नाम 
सुरेंद्र सागर है! 
शायरी ईस बलग में आगे भी लिखता रहूंगा !मेरा ब्लग है 
www.surjeetsanjeet.blogspot.com 
!और सुरेंद्र सागर एमजी मेरा यूट्यूब चैनल है 
और आमगाछी डायरी हमारा गांव हमारा संस्कृति फेसबुक पेज भी है !
तो दोस्तों मेरा इतना कुछ सुनने के बाद अगर आप सब अभी इस चैनल को सब्सक्राइब नहीं किए तो मैं अबभी साहित्य और कला मे असफल रहूगा  ! 
आपका सबस्काईब ही हमे सफलता दिलाएगा! 
                                                                        सुरेन्द्र सागर


   

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